कविता
दर्द
लिख रही हु प्रिय एक ओर ख़त तुम्हारे नाम
धूप के अक्षर स्याही फूलो के मकरंद सी
कुछ मीठी यादे अपने प्रेम की लिए हुए
लेखनी पर यादो के लग रहे विराम
कह नहीं पाती दिल की बात
दर्द को नहीं मिलते अल्फाज
शब्द अंतर्मन सुख रहे है
दूरिया इतनी , जो अब मेरी खामोशिया बन गई है
ये बात अलग है खामोशिया करदे बयान
वर्ना कुछ दर्द अल्फाजो में
बयान नहीं किये जाते उन दर्दो से हमारा
गहरा नाता जुड़ जाता है
दर्द
लिख रही हु प्रिय एक ओर ख़त तुम्हारे नाम
धूप के अक्षर स्याही फूलो के मकरंद सी
कुछ मीठी यादे अपने प्रेम की लिए हुए
लेखनी पर यादो के लग रहे विराम
कह नहीं पाती दिल की बात
दर्द को नहीं मिलते अल्फाज
शब्द अंतर्मन सुख रहे है
दूरिया इतनी , जो अब मेरी खामोशिया बन गई है
ये बात अलग है खामोशिया करदे बयान
वर्ना कुछ दर्द अल्फाजो में
बयान नहीं किये जाते उन दर्दो से हमारा
गहरा नाता जुड़ जाता है
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