तन्हाई
मैं क्यों सदा तन्हा रही
खुशियों से महरूम रही रुसवा रही
हर पल दर्द से बोझिल रही मैं'
पलकों में आंसू रहे सदा
ना कोई हमसफ़र मेरा ,
सांस लेना भी नुश्किल हुआ !
क्या खता थी मेरी
क्यू मैं सदा तन्हा रही
गुमसुम रही , अकेली रही !
न उम्मीद रही
न रौशनी रही ,
किस बात की सजा मिली
क्यों जिन्दगी नीर ' के साथ खेलती रही
क्यू हर कोई जज्बातों के साथ खेलता रहा !
आँसुओ में डुबोता रहा ,
हर पल तमाशा बनी ' नीर '
तन्हा रही अकेली रही !
मैं क्यों सदा तन्हा रही
खुशियों से महरूम रही रुसवा रही
हर पल दर्द से बोझिल रही मैं'
पलकों में आंसू रहे सदा
ना कोई हमसफ़र मेरा ,
सांस लेना भी नुश्किल हुआ !
क्या खता थी मेरी
क्यू मैं सदा तन्हा रही
गुमसुम रही , अकेली रही !
न उम्मीद रही
न रौशनी रही ,
किस बात की सजा मिली
क्यों जिन्दगी नीर ' के साथ खेलती रही
क्यू हर कोई जज्बातों के साथ खेलता रहा !
आँसुओ में डुबोता रहा ,
हर पल तमाशा बनी ' नीर '
तन्हा रही अकेली रही !
5 comments
Write commentsआपकी यह पोस्ट आज के (३० जुलाई, २०१३) ब्लॉग बुलेटिन - एक बाज़ार लगा देखा मैंने पर प्रस्तुत की जा रही है | बधाई
Replyतन्हाई की पीड़ा।
Replythanx a lot tushar ji regards
Replyaabhar devendra ji
Replyह्रदय स्पर्शी ......
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