त्यौहार और हमारी परम्पराये



त्यौहार और हमारी परम्पराये

ये  सही बात हैं कि   त्योहारों को मनाने  के पीछे हमारी परम्पराये  भी   प्रमुख  होती हैं  !  त्यौहार और उत्सव हमारे सुख  और हर्षोल्लास के प्रतीक   हैं  जो समय के अनुसार अपने रंग  रूप और   प्रकति  में   भिन्न  होते हैं  !  धर्मो से  जुड़कर इनका स्वरुप    अलग अलग हो जाता हैं !   हर  त्यौहार   मनाने  के पीछे एक ही  सन्देश होता हैं कि  सब लोग परेशानियों से दूर हटकर अपने परिवार के साथ  आनंद  मना  सके  और लोगो में  आपसी सद्भाव और प्रेम बना रह सके !    त्यौहार का मतलब हैं बीच बीच में   बेफिक्र  हो जाना  वरन  इन्सान तो आज अपनी परेशानियों में   सब कुछ भूल  गया हैं !    लेकिन अब त्यौहार मनाने  की चिंता भी बड़ी होती जा रही हैं  !   लोग  आज  त्योहारों का उपयोग  भी दुसरो का दुःख बढ़ाने   के लिए करते हैं  !  त्यौहार किसी भी  धर्म का हो लेकिन उसका  मूल मकसद   इंसानियत होना चाहिए    !   एक दुसरे को  बधाई देने का मजा तब होता  हैं जब हमारे दिल  में   एक दुसरे के लिए  प्रेम हो  सद्भाव  की  भावना हो  !   हम अपनी मानवता को न भूल  बैठे  !  तभी  हम  सही मायने  में   त्यौहार  मना  पायेंगे  और  हमारी   परम्पराये   भी जीवंत   बनी रहेंगी  !   महान महापुरुष इसी   सद्भाव और प्रेम  के  कारण  हमे ये त्यौहार  सोप   गये  हैं   अब  इन त्योहारों   की गरिमा   को बनाये  रखने का द़ायित्व   हमारे समाज के हाथो  में  हैं  कि  इन त्योहारों  की वजह  से  किसी  की भावना  आहत   न हो  !  हमारे  देश में  राम  कृष्ण   बुद्ध  और भगवान् महावीर  एक विशेष उद्दशेय के लिए इस  धरती पर  आये थे  ! धर्म को स्थापित  किया जाये और अधर्म को  हटाया जाये !  हमारी   संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता हैं कि यहाँ पर मनाये जाने वाले सभी त्यौहार समाज में  मानवीय गुणों को स्थापित करके  लोगो में  प्रेम एकता और सद्भावना को बढ़ाते हैं !  भारत में  त्योहारों और उत्सवो का सम्बन्ध  किसी जाति  धर्म  भाषा  और क्षेत्र से न  होकर समभाव   से हैं !


 
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2 comments

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21 October 2013 at 10:19 delete

पहले त्योहारों के साथ आस्था और परंपरा जुड़ी होती थीं। त्योहार हमारी संस्कृति का आईना होते हैं। आज इनका भी व्यवसायीकरण हो गया है। पहले ये त्योहार परस्पर मेल-मिलाप का ज़रिया हुआ करते थे और आज ये विशुद्घ आस्था का वास्ता न रहकर व्यवसायिक समीकरणों को सुदृढ़ करने का रास्ता बन गए हैं। त्योहारों के पीछे की वास्तविक सोच बदल गई है। आज त्योहारों के साथ प्रतियोगिता भी जुड़ गई है। त्योहारों पर तोहफ़े यानी उपहार दिए जाने की हमारी हिंदुस्तानी संस्कृति की काफ़ी पुरानी परंपरा रही है। पहले खुले दिल से तोहफ़े दिए जाते थे, उपहारों के पीछे छुपी भावना देखी जाती थी, आज क्वालिटी और ब्रांड देखे जाते हैं। यानी दिखावे की भावना प्रबल हो गई है। सामने वाले ने जिस स्तर का तोहफ़ा दिया है हमें भी उसी के अनुरूप देना है।

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Unknown
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24 October 2013 at 06:20 delete

so true jaisingh ji very nice

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