कलियुग
कलियुग है यह
चारो और अंधकार
अंधविश्वास , स्वार्थ से
भरा हुआ आदमी
न ईमान ना धरम
हो रहा नैतिक
मूल्यों का हास
न शांति ना सदभाव
दौड़ रहा मानव असीमित
इच्छाओ के पीछे
कभी इस गली
कभी उस मोहल्ले
कभी इधर
कभी उधर
फिर भी मानव की
तृष्णा नहीं पूरी होती
कन्याओ को नहीं
जीने देता समाज
हो रही कन्या भ्रूण हत्या
घोर अन्याय
कलियुग है ये !
कलियुग है यह
चारो और अंधकार
अंधविश्वास , स्वार्थ से
भरा हुआ आदमी
न ईमान ना धरम
हो रहा नैतिक
मूल्यों का हास
न शांति ना सदभाव
दौड़ रहा मानव असीमित
इच्छाओ के पीछे
कभी इस गली
कभी उस मोहल्ले
कभी इधर
कभी उधर
फिर भी मानव की
तृष्णा नहीं पूरी होती
कन्याओ को नहीं
जीने देता समाज
हो रही कन्या भ्रूण हत्या
घोर अन्याय
कलियुग है ये !
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