नारी
नारी हू मैं
ईश्वर की अनूठी रचना हू मैं
अलोकिक हू मैं
कभी बहन ,
कभी बेटी हू
कभी छाव कभी धुप हू
कभी चट्टान की तरह अटल हु
अपने इरादों मैं ,
कभी मोम हू
नारी हू मैं
अभागन क्यू हू , समझ नहीं पाती
जानना चाहती हु
नारी सबका पालन पोषण करती
सारे दुखो को सहती
त्याग सेवा और समर्पण की मूर्ति
अद्भुत निराली
यह नारी ही है जो
त्याग करने के सिवा कुछ
नहीं जानती
फिर नारी क्यू पल पल
तिरस्कार सहती
अब तोड़ देगी नारी उन जंजीरों को
जिनमे वो जकड़ी हुई है
अब नहीं सहेगी कोई अनाचार , अत्याचार
क्युकी नारी सबला है , शक्ति है
सशक्त बन गई नारी अब
नारी हू मैं
ईश्वर की अनूठी रचना हू मैं
अलोकिक हू मैं
कभी बहन ,
कभी बेटी हू
कभी छाव कभी धुप हू
कभी चट्टान की तरह अटल हु
अपने इरादों मैं ,
कभी मोम हू
नारी हू मैं
अभागन क्यू हू , समझ नहीं पाती
जानना चाहती हु
नारी सबका पालन पोषण करती
सारे दुखो को सहती
त्याग सेवा और समर्पण की मूर्ति
अद्भुत निराली
यह नारी ही है जो
त्याग करने के सिवा कुछ
नहीं जानती
फिर नारी क्यू पल पल
तिरस्कार सहती
अब तोड़ देगी नारी उन जंजीरों को
जिनमे वो जकड़ी हुई है
अब नहीं सहेगी कोई अनाचार , अत्याचार
क्युकी नारी सबला है , शक्ति है
सशक्त बन गई नारी अब
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