भ्रष्टाचार और राजनीती
समाज में अनैतिकता, अराजकता और स्वार्थ से युक्त भावनाओं का बोलबाला हो गया है। परिणामस्वरूप भारतीय संस्कृति और उसका पवित्र तथा नैतिक स्वरूप धुँधला हो गया है। इसका एक कारण समाज में फैल रहा भ्रष्टाचार भी है। हमे अपने आपको नैतिक मूल्यों की कसोटी पर खरा रखना होगा !
आज देश की समस्या मे सबसे बड़ी समस्या भ्रष्टाचार बन गयी है ! आज देश मे भ्रष्टाचार खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है ! नेता से लेकर अधिकारी सभी भ्रष्टाचार मे लिप्त है नेता और नौकरशाह का भ्रष्ट गठजोड़ ही भ्रष्टाचार की जड़ है ! न्याय पालिका भ्रष्टाचार पर प्रहार कर रही है लेकिन नेता लोग भ्रष्टाचार रोकने का दिखावा करते है स्कूल व कॉलेज भी इस भ्रष्टाचार से अछूते नहीं है। दलाल बाबु , पुलिस और राजनेता भी भ्रष्टाचार के सशक्त स्तंभों के रूप मैं सक्रिय है ! जनता की गाढ़ी कमाई को लूटने वाले भ्रष्ट लोग पुनः सत्ता पर असीं हो रहे है !न्यायपालिका भी असहाय अवस्था मैं है ! आखिर इस तंत्र को स्वस्थ बनाने की अव्यशाकता कहा कहा पर है ? बढ़ता भ्रष्टाचार अब तो शिष्टाचार की श्रेणी मैं आ गया है !भ्रष्टाचार के फ़ैसलों मैं मध्यम वर्ग की भूमिका भी सही नहीं रही है ! राजनीति स्वार्थ सिद्धि और खुदगर्जी का साधन बन गयी है ! सामाजिक मूल्यों का विनाश करके सब भौतिक विकास की दौड़ में अंधे हो चुके है ! ऐसे लोगो को आगे आने की जरुरत है जिन पर कभी स्वार्थी और लालची होने का आरोप नहीं लगा हो !
बस इनके तरीके दूसरे हैं। गरीब परिवारों के बच्चों के लिए तो शिक्षा सरकारी स्कूलों व छोटे कॉलेजों तक सीमित होकर रह गई है !सरकार यदि सच मे व्यवस्था को भ्रष्टाचार से मुक्त करना चाहती है तो उसे सम्पत्ति की घोषणा की किसी स्वतंत्र जाँच जाँच आयोग से जाँच करवानी चाहिए ! सरकार घोटाले पर घोटाला कर रही है ! हमारी चुनाव प्रणाली भी भ्रष्टाचार की जननी बन चुकी है !, लोगो को एक मत होकर इसके विरुद्ध आवाज़ उठानी ही होगी ! नेताओं को नैतिक मूल्यों पर टिके रहने की सख्त जरुरत है ! नहीं तो हमारे देश का विकास नहीं होगा और युवा पीढ़ी को इस मे भी इसका गलत संदेश जायेगा !
प्रत्येक व्यक्ति के मनोबल को ऊँचा उठाया जाए। प्रत्येक व्यक्ति को अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए अपने भ्रष्टाचार से बाहर निकालना होगा !
समाज में अनैतिकता, अराजकता और स्वार्थ से युक्त भावनाओं का बोलबाला हो गया है। परिणामस्वरूप भारतीय संस्कृति और उसका पवित्र तथा नैतिक स्वरूप धुँधला हो गया है। इसका एक कारण समाज में फैल रहा भ्रष्टाचार भी है। हमे अपने आपको नैतिक मूल्यों की कसोटी पर खरा रखना होगा !
आज देश की समस्या मे सबसे बड़ी समस्या भ्रष्टाचार बन गयी है ! आज देश मे भ्रष्टाचार खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है ! नेता से लेकर अधिकारी सभी भ्रष्टाचार मे लिप्त है नेता और नौकरशाह का भ्रष्ट गठजोड़ ही भ्रष्टाचार की जड़ है ! न्याय पालिका भ्रष्टाचार पर प्रहार कर रही है लेकिन नेता लोग भ्रष्टाचार रोकने का दिखावा करते है स्कूल व कॉलेज भी इस भ्रष्टाचार से अछूते नहीं है। दलाल बाबु , पुलिस और राजनेता भी भ्रष्टाचार के सशक्त स्तंभों के रूप मैं सक्रिय है ! जनता की गाढ़ी कमाई को लूटने वाले भ्रष्ट लोग पुनः सत्ता पर असीं हो रहे है !न्यायपालिका भी असहाय अवस्था मैं है ! आखिर इस तंत्र को स्वस्थ बनाने की अव्यशाकता कहा कहा पर है ? बढ़ता भ्रष्टाचार अब तो शिष्टाचार की श्रेणी मैं आ गया है !भ्रष्टाचार के फ़ैसलों मैं मध्यम वर्ग की भूमिका भी सही नहीं रही है ! राजनीति स्वार्थ सिद्धि और खुदगर्जी का साधन बन गयी है ! सामाजिक मूल्यों का विनाश करके सब भौतिक विकास की दौड़ में अंधे हो चुके है ! ऐसे लोगो को आगे आने की जरुरत है जिन पर कभी स्वार्थी और लालची होने का आरोप नहीं लगा हो !
बस इनके तरीके दूसरे हैं। गरीब परिवारों के बच्चों के लिए तो शिक्षा सरकारी स्कूलों व छोटे कॉलेजों तक सीमित होकर रह गई है !सरकार यदि सच मे व्यवस्था को भ्रष्टाचार से मुक्त करना चाहती है तो उसे सम्पत्ति की घोषणा की किसी स्वतंत्र जाँच जाँच आयोग से जाँच करवानी चाहिए ! सरकार घोटाले पर घोटाला कर रही है ! हमारी चुनाव प्रणाली भी भ्रष्टाचार की जननी बन चुकी है !, लोगो को एक मत होकर इसके विरुद्ध आवाज़ उठानी ही होगी ! नेताओं को नैतिक मूल्यों पर टिके रहने की सख्त जरुरत है ! नहीं तो हमारे देश का विकास नहीं होगा और युवा पीढ़ी को इस मे भी इसका गलत संदेश जायेगा !
प्रत्येक व्यक्ति के मनोबल को ऊँचा उठाया जाए। प्रत्येक व्यक्ति को अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए अपने भ्रष्टाचार से बाहर निकालना होगा !
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