स्त्री आने वाले कल की नई सम्भावना

 स्त्री आने वाले कल की नई सम्भावना 

 

 

    साल  भर में  एक दिन केवल  महिला याद करने के लिए है महिला दिवस।   पुरुष स्त्री को सिर्फ कैद करके रखना जानते है  हमेशा स्त्री से सवाल पूछे जाते है !   तुम कहां गई थी, किससे बात कर रही थी, क्या पहन रखा है, छत पर क्यों खड़ी थी, टाइम से खाना क्यों नहीं बनाया, तुमने क्यों सब खा लिया, सड़क पर वहां क्या कर रही थी, घर देर से क्यों लौटी, किसका फोन आया था, इतनी देर तक क्यों सोती रही.....

सैकड़ों सवाल इसी तरह के मर्दों की जुबान से निकलते हैं और स्त्रियों को एक सवाल के रूप में खड़ा कर देते हैं। उनकी आत्मा धीरे धीरे इन सवालों के अनुरूप बनने के लिए तैयार होने लगती है। इस प्रकार बन जाती है एक ऐसी स्त्री जो खुद होते हुए भी खुद नहीं होती। महिला दिवस पर इन  पुरुषो से  कहना चाहूंगी कि ...आप अपने घर में कृपया अपनी महिलाओं को आजाद कर दो, उन्हें पुरुषों जैसी छूट और अधिकार दे दो, उन्हें रोको टोको मत, वो समझदार हैं, उन्हें खुद पता है कि उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए।  स्त्री  अपने अधिकारों के लिए दावा नहीं करतीं। लेकिन एक बात जान लें कि जो अपनी मदद खुद नहीं करता, उसकी मदद ईश्वर भी नहीं करता अर्थात अपने साथ होने वाले अन्याय, अत्याचार से छुटकारा पाने के लिए खुद महिलाओं को ही आगे आना होगा। उन्हें इस अत्याचार, अन्याय के विरुद्ध आवाज उठानी होगी! महिला  दिवस पर स्त्री की जो मूर्ति सामने आती है, वह है- प्रेम, स्नेह व मातृत्व के साथ ही शक्तिसंपन्न स्त्री की मूर्ति। यह दिन यह गिनने का भी है कि आखिर हमने मील के कितने पत्थर पार कर लिए। सचमुच गौरव और आत्म- विश्वास से कलेजा तर हो जाता है उन पाई हुई पायदानों के लिए और उन आत्मबल से भरी स्त्रियों के लिए जो सचमुच गजब की हैं। इक्कीसवीं सदी की स्त्री ने स्वयं की शक्ति को पहचान लिया है। उसने काफी हद तक अपने अधिकारों के लिए लड़ना सीख लिया है। आज स्त्रियों ने सिद्ध किया है कि वे एक-दूसरे की दुश्मन नहीं, सहयोगी हैं !
  अब आज  की स्त्री को  अपने पैरों पर, अपने कदमों पर, अपने दिमाग के आधार पर जीना, चलना, बोलना और लड़ना सीखना होगा तभी महिला दिवस  को मनाने की सार्थकता है !
नारेबाजी करने वाले पुरुषों,  खुद को सहज और सरल बताने वाले  पुरुषी  को चाहिए कि  जितना वो अपने बेटे को प्यार देते हैं,  जितना वो अपने लाडले के लिए चिंतित रहते हैं, बेटियों की भी कद्र  करे उन्हें नजरंदाज न करे ! बस....उतना ही, न उससे ज्यादा और न उससे कम, अपनी बिटिया, अपनी पत्नी, अपनी बहन और अपनी मां के लिए करें।   तभी हम सही मायनों में महिला दिवस को सार्थकता प्रदान करेंगे।
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