नारी चाहे खुला आँसमा


नारी चाहे  खुला आँसमा

  प्रित्सत्तात्मक  परिवार नारी के लिए चाहे कितने भी अलंकृत शब्दों का प्रयोग करले  पर उनके कृत्यों से साफ़ जाहिर होता है कि स्वतंत्रता के छे दशक बाद भी वह  सड़ी  गली तथाकथित परम्पराओ में जकड़ा हुआ है  ! यह समाज में  फैली  विकृति मनोवृति के  चलते  उन्हें  चारदीवारी के भीतर कैद करने मैं यकीन रखता है  जो बेगुनाह है और जिनका अपराध इतना है उन्होंने स्त्री देह पाई है  ! रक्षा के नाम पर कैद करने की घिनोनी हरकत परंपरा सिर्फ ग्रामीण अंचलो की उपज है एसा  नहीं है  महानगरीय  संस्कृति भी स्त्री को सुरक्षा देने के नाम पर दरवाजो के भीतर बंद करने में गुरेज नहीं करती ! हमारे सामंतवादी ढांचे ने माना है कि सामाजिक प्रतिष्ठा के आगे स्त्री का स्वाभिमान अब नगण्य है क्युकि स्त्री को काठ की पुतली  माना  जाता है ! उसकी पीड़ा किसी को विचलित नहीं करती उलटे उसके शारीरिक और मानसिक घाव के  लिए उसे ही जिम्मेदार ठहराया जाता है !  नेतिकता का ढोल पीटने वाले खुद नेतिकता को परिभाषित नहीं कर पाए सच तो यह है कि स्त्री  स्वतंत्रता राजनीतिक  मंचो से आत्मसात  होने वाली वो अवधारणा है जिसे विश्व मानचित्र पर अपनी लोकतान्त्रिक छवि बनाने के लिए  पुनः पुनः दोहराया अवश्य जाता है वह  मन से स्वीकारा  नहीं जाता ! स्त्री पर घर के भीतर और घर के बाहर थोपे गए यह नियम इशारा कर रहे है कि  पुरुष सत्तामक समाज स्त्री के विस्तार उसकी क्षमताओ से कही न कही भयभीत है वे जानते है कि  श्री खुद को विकट  परिस्थतियो में स्थापित करने की  क्षमता रखती है  इसलिए कही  प्रतिष्टा  के नाम पर तो कभी उसकी सुरक्षा के नाम पर उसे खुले आसमा से वंचित करने की साजिशे की जाती है ! लेकिन यह  तय है कि जिस समय वह अपनी स्वतंत्रता के मोल को  समझ  लेगी वह अपना आकाश हर बंधन को तोड़ कर पा लेगी ! पूरी दुनिया के नारीवाद आन्दोलन को दिल्ली गैंग रैप के बाद हुए जोरदार प्रदर्शनों ने होंसला दिया   ! फेस बुक और ट्विटर जैसे   सोशल नेटवर्किंग ने ओरतो के राजनीतिकरण  में  बड़ी मुख्य भूमिका निभाई है ! नारी अपने खिलाफ हिंसा और  उसकी सोच को समझने लगी है !


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