रिश्ते


                                                             रिश्ते
आज हम भोतिक्तावादी एवं  अर्थिक  युग मे एक प्रतिस्पर्धा के रूप में अपमा जीवन जी रहे है !सबसे आगे बढ़ने की होड़ लगी है !!अपना मुकाम हासिल भी किया है ! पीछे  मुड़कर  देखते है तो लगता है इसी तो कल्पना ही नहीं की थी ! लेकिन सुख सुविधाओं से युक्त जीवन  स्तर और सामाजिक  प्रतिष्ठा इस सबको हासिल करने के बाद कभी अकेले मे सोचते है तो लगता है कि हम हमारा कोई हमसे दूर हो गया है !हमारे पास अपनों के लिए भी वक्त नहीं होता ! हमारे रिश्तों को हम नहीं सहेज प् रहे है अपनी असीमित इच्छाओ के पीछे भाग रहे है !हमारे पास अपनों के लिए ही वक्त नहीं है !रिश्तों की गर्माहट समाप्त होती जा रही है ! हम जाने अनजाने रिश्तों की उपेक्षा करने लगे है !और इनसे ही दूरियाँ  बढ़ने लगी है !और दूरियों को  मिटाने का समय भी हमारे पास नहीं होता है !


रिश्ते  की  मजबूत बुनियाद ही  हमारी  भारतीय संस्कृति की असल पहचान रही है ! विदेशी यह देखकर हैरान होते है कि  यहाँ रिश्तों  मे  इतनी मज़बूती कैसे है !हमारे यहाँ रिश्ते बखूबी निभाए जाते है !  रिश्तो  की विविधता और प्रगाढ़ता की यही वजह है कि जिसके कारण  हमारे  भारतीय  समाज मै    नाना नानी , मौसा मौसी ,बुआ  पुफा ,मामा मामी भाई बहिन जैसे तमाम संबोधन अभी भी जिंदा है ! हमारे यहाँ रिश्ते न केवल जिन्दा है बल्कि अटूट है ! रिश्तो मे  संबल है बंधन है !अपनों की  याद  है ! अपने है तो हिम्मत है ताकत है हर मुश्किल  का सामना करने का हौसला है !अपनों से  जीवन  मे  ख़ुशियाँ है ये रिश्ते  हमारे जीवन का आधार है इनसे हे हमारे जीवन की पूर्णता और सार्थकता है लेकिन अभी  भी देर नहीं हुई है स्नेह का स्रोत अभी भी   बह रहा है  जरुरत है हमे अपने रिश्तों को सहेज कर रखने की !

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