बदलनी होगी संकीर्ण सोच


बदलनी होगी  संकीर्ण सोच

 प्राचीन काल मै एक तरफ नारी को शक्ति और देवी का दर्जा  दिया गया वाही दूसरी और शताब्दियों से नारी अबला के रूप में  देखी  गई ! नारी के प्रति समाज की सोच संकीर्ण होती जा रही है नारी पुरुष के लिए सिर्फ एक भोग की वस्तु बनके रह गई है ! नारी को एक महज मनुष्य के रूप में   देखन   का  प्रयास न तो पुरुष ने किया  खुद नारी ने भी नहीं किया !सामाजिक विकास में नारी को पुरुषो के साथ भागिदार नहीं बनाने से तो नारी पिछड़ी हुई ही रही ! वही पर सामाजिक धार्मिक और अध्यात्मिक धारनाओ ने भी अनेक उलझने पैदा की !जहा पर बेटा  कुल का दीपक  बुढ़ापे ली लाठी , वंश वाहक व् पिता की चिता की मुखाग्नि देने  वाला माना जाता है ! वही पर बेटियों को पराया धन और एक बोझ समझा जाता  है ! बेटा बेटी में लैंगिक भेदभाव किया जाने लगा है ! बेटे के जनम लेने पर तो थाली बजाई जाती है और बेटी पैदा होती है तो घर में एक तरह का मातम छा जाता है कि बेटी पैदा हो गयी तो एक अन्याय हो गया ! सबसे बड़ी बात यह है की बेटियों को भी उचित मार्ग दर्शन और शिक्षा मिले तो वो बेटो से किसी भी रूप में कम नहीं है ! आज ऐसी कोई जगह नहीं है जहा महिलाओ ने अपनी योग्यता का परचम नहीं लहराया हो !सरकार ने महिलाओ के विकास के लिए हर संभव प्रयास कर रही है ! महिला शिक्षा , सम्पति में अधिकार ,हिन्दू विवाह अधिनियम , घरलू हिंसा अधिनियम , शारदा अधिनियम इत्यादि लेकिन सरकारी प्रयास तब तक नाकाफी है जब तक सामाजिक सोच में महिलाओ के लिए परिवर्तन नहीं लाया जायेगा !


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5 comments

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DRACULA
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4 June 2013 at 13:39 delete

Good thoughts on women empowerment

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@aryaraju
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7 June 2013 at 22:15 delete

महिलाओं को भी जागृत होने की जरुरत है नीरा जी !!!

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8 June 2013 at 08:08 delete

आदरणीया नीरा जी आज महिला ही महिला की दुशमन है सभी महिलाओं को एकजुट होने की अति आवश्यकता है । डी पी माथुर

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