अपने
बचपन मे किसी को नाराज कर देते थे तो गले मे बांहे डालकर मनाते थे लेकिन आज हम बड़े हो गए है और किसी का दिल अगर दुख देते है तो हम उसे भुला देते है अपनों को वापस से मनाते नहीं है क्या हम इसलिए बड़े हुए है ? किस बात का अहंकार हमारे दिल मे समा गया है क्यों हम अपनों के आगे झुकना नहीं जानते है आज हमारे अपनों को हमारी ज्यादा जरुरत है आज हमारी उम्र बढ़ने के साथ हमारी सोच मे ही अंतर आ गया है अपने माता पिता को खुश देखना और हमारा उनकी ख़ुशी का कारण होना हमारी सबसे बड़ी सफलता है लेकिन बदले मे हम अगर उनकी आँखों मे आंसू देते है तो यह हमारे जीवन की सबसे बड़ी हार भी है अपनों के बिना कोई ख़ुशी मायने नहीं रखती इसलिए हमे अपनों का साथ कभी नहीं छोड़ना चाहिए
बचपन मे किसी को नाराज कर देते थे तो गले मे बांहे डालकर मनाते थे लेकिन आज हम बड़े हो गए है और किसी का दिल अगर दुख देते है तो हम उसे भुला देते है अपनों को वापस से मनाते नहीं है क्या हम इसलिए बड़े हुए है ? किस बात का अहंकार हमारे दिल मे समा गया है क्यों हम अपनों के आगे झुकना नहीं जानते है आज हमारे अपनों को हमारी ज्यादा जरुरत है आज हमारी उम्र बढ़ने के साथ हमारी सोच मे ही अंतर आ गया है अपने माता पिता को खुश देखना और हमारा उनकी ख़ुशी का कारण होना हमारी सबसे बड़ी सफलता है लेकिन बदले मे हम अगर उनकी आँखों मे आंसू देते है तो यह हमारे जीवन की सबसे बड़ी हार भी है अपनों के बिना कोई ख़ुशी मायने नहीं रखती इसलिए हमे अपनों का साथ कभी नहीं छोड़ना चाहिए
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