माँ
आज माँ की याद बहुत है आई
बैठे बैठे दिल भर आया
मै अपने दुःख दर्द सुनाती माँ को
माँ से बढ़कर सखी न कोई
सारे दुःख माँ खुद है सहती
फिर भी मुह से उफ़ न करती
माँ तो फूलो का एक गुलदस्ता
सारे परिवार को महकाती
माँ होती है निराळी
जिसका नहीं है कोई सानी
आज माँ की याद बहुत है आई
बैठे बैठे दिल भर आया
मै अपने दुःख दर्द सुनाती माँ को
माँ से बढ़कर सखी न कोई
सारे दुःख माँ खुद है सहती
फिर भी मुह से उफ़ न करती
माँ तो फूलो का एक गुलदस्ता
सारे परिवार को महकाती
माँ होती है निराळी
जिसका नहीं है कोई सानी
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