लेख यथार्थ

                                                        लेख   यथार्थ
आधुनिकता की इन गलियों मे कोलाहल और आपाधापी मे जीवन कब और कहा खो जाता है पता ही नहीं चलता !हम अपनी मंजिल को पाने के लिए बेहताशा दोड़ते जा रहे है ! और पक्की बात है हमे इस तेज रफ़्तार की कीमत भी चुकानी होगी हमे न खुद की सुध है न किसी दुसरे की भावनाओ की फिकर !हमे जीवन को सोच समझकर चलने की जरुरत है हम किसी की होड़ नहीं कर सकते है !हमे हर चीज को खुली आखो से देखने की जरुरत है कि हम जिस को पाने के लिए भाग रहे है वो सार्थक तो है ना !वो दौड़ हमे सही मंजिल तक तो पहुचायेगी ना !
जीवन मे देखने का सबसे ज्यादा महत्व है और पहचान का पहला रास्ता आखो से ही खुलता है आखे यथार्थ का पैमाना होती है हम अगर आखे खोलकर काम करते है कभी तो धोखा नहीं खाते है इसलिए तो कबीर कहते है -' तू कहता कागद की लेखी मे कहता आखिन की देखी .'! कुछ सच को हम और आप तभी समझ सकते है जब हमारी आँखे खुली हो हमे सच को जानने के लिए खुद को देखना होगा और भोगना होगा ! महान लोगो के सच के बारे मे कितना ही सुनले और कितना ही पढले लेकिन सही मायने मे जानने के लिए उसे खुद भोगना होगा !सच हमेशा कड़वा होता है !यदि भीमराव अम्बेडकर निम्न जाती के लोगो की व्यथा सामने लाये तो इसके पीछे उनका भोगा हुआ कठोर यथार्थ था !वे उनके लिए कभी झुकने को तैयार नहीं हुए !कबीर राजा राम मोहन राय ,भगत सिंह गाँधी ने वैसा हे किया जसा उनका यथार्थ था !! क्युकि सच की जीत होती है सच हमेशा सच होता है !सच न मिट सकता है ना छिप सकता है वो तो सिर्फ दिख सकता है !
हमे वास्तविकता मे जीने कि जरुरत है न कि भेड़ चाल कि तरह कि तरह कि किसी कि देखा देख हम भी कई गलतिया अपने जीवन मे कर बैठते है !इसलिए यथार्थ मे जीना बेहद जरुरी है !और यथार्थ के लिए जीना बहुत जरुरी है !
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