मन

                                                                  मन
मन कहा चला रे तू
कभी अंदर कभी बाहर
भरा नहीं पेट लोभ और तृष्णा से
कैसी अज्ञानता है ये , क्यू तुम खुद को बांधते
मोह की कोई सीमा नहीं
तू सब जानता है फिर क्यू
ये सब
तोड़ दे इन बन्धनों को
भय से मुक्त हो
वर्तमान समय मे लौट आ तू मन
आत्म भाव मे लीन रह
अपने घर तू लौट आ मन !
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